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कविता

फोटो खींचना मना है

ए. अरविंदाक्षन


मुझे उस स्थान का स्मरण नहीं है
जहाँ वह किला था
मुझे इतना ही स्मरण है
उस खूबसूरत किले ने मुझे आकर्षित किया था
एक प्रेमिका की तरह।
मेरे साथ जितने सहयात्री थे
उन्हें ऐसा नहीं लगा
इसलिए वे मुझसे अलग हो गये।
मैं अकेला
किले का प्रेमी
उसके रहस्य भरे गलियारों में
दीवाने की तरह भटकता रहा
सीलन भरे किसी कक्ष में कदम रखते ही
मुझे लगा
वहाँ सलीन की बू नहीं
पूरे कक्ष में सचमुच खुशबू छायी हुई है
तहखाने की सीढ़ियाँ उतरते समय
मुझे लगा
मैं अपनी प्रेमिका के आलिंगन में बद्ध हूँ
शयन कक्ष के बड़े से पलंग पर मैं बैठा
बैठा या लेटा
ठीक से कुछ याद नहीं
ग ग ग
शाम हो चुकी थी
मैं किले के बाहर आ गया था
मुझे लगा
मैं अपनी प्रेमिका से बिदा ले रहा हूँ
सूरज डूब चुका था
मैंने बाहर से किले को देखा
नहीं, नहीं अपनी प्रेमिका को देखा
वह मुस्कुरा रही थी
मेरा मन हुआ
उसका एक फोटो खींच लूँ
कैमरा उठाते ही
मेरे कंधे पर किसी ने हाथ रखा
वह लंबा आदमी चौकीदार था
उसने कहा :
फोटो खींचना मना है
किले का फोटो खींचना सख्त मना है
यह अद्भुत किला है
चमत्कारों से भरा
प्रलोभनों से युक्त
तुम्हें इसके अंदर से
अपूर्व अनुभव मिले होंगे
मैंने सिर हिलाया
चौकीदार ने फिर कड़े स्वर में कहा
बस
किले खूबसूरत होते ही हैं
जितना चाहो उतना देखो
पर फोटो खींचना सख्त मना है

 


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